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October 16, 2024 5:47 am

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राम कथा जीवन के ताप का हरण कर लेती है – पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज।

रिपोर्ट– धर्मेंद्र कुमार सिंह।

अयोध्या। गंगा जी को पतित पावनी कहा गया है। अर्थात गंगा के जी जब कृपा करती हैं तो मनुष्य के जीवन के सभी पाप का हरण कर लेती हैं। इसी प्रकार से भगवान की कथा मनुष्य के जीवन के सभी प्रकार के ताप का हरण कर लेती है। उक्त बातें अयोध्या नगरी के परिक्रमा मार्ग के हनुमान गुफा के निकट निर्मित कथा मंडप में श्री राम कथा का गायन करते हुए तीसरे दिन पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कहीं।

सरस् श्रीराम कथा गायन के लिए लोक ख्याति प्राप्त प्रेममूर्ति पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने बिहार में औरंगाबाद के दाउदनगर स्थित सूर्य मंदिर से जुड़ी समिति के पावन संकल्प से आयोजित नौ दिवसीय रामकथा गायन के क्रम में कहा कि सनातन सद्ग्रन्थों में लिखा गया है – दैहिक, दैविक, भौतिक तापा रामराज काहू नहीं व्यापा। इस काली काल में जो भी भगवान में लगा रहेगा उसे कभी भी कोई पाप और ताप नहीं सताएंगे। भगवान में लगना भी सभी के वश की बात नहीं है क्योंकि हम जब कई जन्मों तक सत्कर्म करते हैं तब जाकर भगवान की ओर हमारा मन चलता है।

महाराज जी ने श्रीराम जन्म के कारण और जन्मोत्सव से जुड़े प्रसंगों का गायन करते हुए कहा कि मनुष्य के रूप में जन्म लेना जीव का सौभाग्य मान गया है। मानव शरीर में रहकर ही जीव अपना कल्याण कर पाता है और अन्य किसी भी जीव को यह सुयोग नहीं मिलता है। मनुष्य का शरीर धारण करने का एकमात्र उद्देश्य सत्कर्म करना ही है। इस धरा से वापस जाने पर केवल सतकर्म ही है अपने साथ जाता है।

मनुष्य के चित्त की गति जैसी होती है उसे मानस जी से प्राप्ति भी उसी प्रकार से होती है। मनुष्य का जब कर्म बिगड़ता है तो उसे भोग योनि प्राप्त होती है। भोग योनि में जीव को कर्म का बंधन नहीं लगता है। कुत्ते, बिल्ली, गधे आदि जीव अपने जीवन भर केवल भोग करते हैं। भोग योनि में सारे भोग को भोग लेने के बाद पुनः उसे जीव को मनुष्य का शरीर प्राप्त होता है ताकि वह अपने कर्मों के माध्यम से एक बार पुनः भगवान से जुड़ सके। अगर मनुष्य का शरीर पाकर भी कोई भोग योनि में ही रहना चाहता है तो क्या कहा जा सकता है?

पूज्य श्री ने कहा कि हर मनुष्य सुबह से शाम तक कुछ ना कुछ काम करता ही रहता है। लेकिन उसका किया हुआ हर कार्य, चाहे वह किसी के लिए भी कर रहा हो, कर्ज़ की अदायगी के अलावा और कुछ भी नहीं है। इस तरह के कार्य का कोई भी फल उस मनुष्य के अपने हित में नहीं होता है। अपने लिए तो उसे हर रोज थोड़ा-थोड़ा सत्कर्म ही करना आवश्यक होता है।

पूज्यश्री ने कहा कि श्री राम कथा मनुष्य को सुखी जीवन के मार्ग और साधन प्रदान करती है। इस कलिकाल में राम कथा मनुष्य को पाप से बचाने के लिए कलमषी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी का कार्य करती है। कथा श्रवण करने वाला भटकने से बच जाता है और सत्कर्म में उसकी गति हो जाती है।

मनुष्य को अपने जीवन में कुछ भी प्राप्त करने के लिए तपस्या करना आवश्यक है। पीढियों के तप के कारण इक्ष्वाकु वंश में रामजी का आगमन हुआ था। भगवान राम ने 14 वर्ष का वन प्रवास स्वीकार कर हमें यह बताया कि बिना तपे (तपस्या) इस धरती पर कुछ भी प्राप्त नहीं होना है। मनुष्य अगर सत्संग और कथा में रहते हुए अपने सभी सांसारिक दायित्वों का निर्वाह करें तो उनकी मति और गति अपने आप सत्कर्मों में होने लगती है।

महाराज श्री ने कहा कि भारत की पुण्य भूमि पर ही भगवान का अवतार होता रहा है। कभी अंशा अवतार तो कभी विशिष्ट अवतार और तो कभी पूर्णावतार के रूप में भगवान इस धरती पर आकर इस धरती को धन्य करते रहे हैं। यह हमारा सौभाग्य है कि हमने इस धरती पर जन्म लिया है। दुनिया के किसी भी देश में भारत के तरह बच्चों को भी महत्व नहीं मिल पाता है यह हमारा सौभाग्य है कि हमारे भारतवर्ष के बच्चे, ममता की छांव में पलते हैं।

पूज्यश्री ने कहा कि भगवान को तर्क से नहीं जाना जा सकता है। पूज्य महाराज श्री ने कहा कि निरंतर भजन में रहने वाले की कभी मृत्यु नहीं होती है। इसलिए सामान्य व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने जीवन के सभी क्रियाओं में संयुक्त रहते हुए भजन में भी प्रवृत्त हों। सत्कर्म सोचने से नहीं होता है सत्कर्म के लिए सोचने वाले सोचते रह जाते हैं लेकिन करने वाला तुरंत उस कार्य को पूरा कर लेता है। जीवन में सफल होने का एक महत्वपूर्ण सूत्र यह भी है कि अगर हमारा सोचा हुआ कोई कार्य हो जाए तो उसे हरि कृपा माने और अगर ना हो तो उसे हरि इच्छा मान लें।

पूज्यश्री ने कहा कि मनुष्य अपने अर्थ और संपत्ति का उत्तराधिकारी तो बना जाता है लेकिन अपने परमार्थ पथ का उत्तराधिकारी कोई-कोई बना पाता है।अपने जीवन काल में ही हमें अपने परमार्थ पथ का उत्तराधिकारी तैयार करने की आवश्यकता है, तभी तो कई पीढ़ियों तक परमार्थ चलता रहता है।

महाराज श्री ने कहा कि राम जी की भक्ति प्राप्त करने के लिए हमें शिव जी की कृपा प्राप्त करनी पड़ती है।पूज्य श्री ने कहा कि प्रकृति किसी को भी क्षमा नहीं करती है। सनातन धर्म और संस्कृति किसी एक व्यक्ति की बनाई हुई नहीं है। सबसे अधिक अत्याचार सनातन धर्म पर ही होते आए हैं फिर भी हमारे संस्कृति पूरे विश्व में अपना सर्वोच्च स्थान बनाये रखने में सक्षम है।

महाराज श्री ने कई सुमधुर भजनों से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। बड़ी संख्या में उपस्थित रामकथा के प्रेमी, भजनों का आनन्द लेते हुए झूमते नजर आए। इस आयोजन से जुड़ी समिति के सदस्यों ने व्यास पीठ का पूजन किया और भगवान की आरती उतारी।

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