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December 11, 2024 10:36 pm

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जानें क्या है इक्ष्वाकु की अयोध्या और रघुकुल की कहानी, और जानें कैसी थी प्रभु श्रीराम की वंशावली?

धर्म। अयोध्या में श्री राम लला की स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियां जोर शोर से चल रही हैं। 22 जनवरी 2024 को कुछ पुरोहितों के मंत्रोच्चार के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र श्री मोदी रामलला की प्रतिमा की स्थापना करेंगे। परन्तु जैसा कि सबको पता है अयोध्या और श्रीरामलला से जुड़ी खबरें आस्था के साथ राजनीतिक विवाद भी उत्पन्न कर रही हैं और सभी की प्रासंगिकता पर एक प्रश्नचिह्न भी खड़ा कर रहा है। ऐसे में हर किसी को यह जानने की उत्सुकता होगी कि भगवान राम की वंश परम्परा क्या थी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार त्रेया युग में भगवान श्रीराम का जन्म अयोध्या में हुआ था। भगवान राम को विष्णु का 7वां अवतार माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान राम का जन्म सूर्यवंश में हुआ था। आइए जानते हैं भगवान श्रीराम की वंश परंपरा यानी ब्रह्राजी से लेकर भगवान राम तक की।

कैसे शुरू हुई रघुकुल की कहानी 

सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्मा जी ने पृथ्वी के प्रथम राजा सूर्य देव के पुत्र वैवस्वत मनु को बनाया। सूर्य पुत्र होने के कारण मनु जी सूर्यवंशी कहलाए और उन्हीं से यह वंश सूर्यवंश कहलाया। इसके बाद अयोध्या के सूर्यवंश में प्रतापी राजा रघु हुए। राजा रघु से इस वंश को रघुवंश कहा गया। यहां आपको श्रीहरि विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम की वंश परम्परा के बारे में जानकारी दी जाएगी। वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे। इल, इक्ष्वाकु, दखलाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यंत, करुष, महाबली, शर्याति और पृषद। राम का जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ था। आइए जानते हैं विस्तार से।

➡️ मरीचि का जन्म ब्रह्मा जी से से हुआ था और मरीचि के पुत्र कश्यप थे। इसके बाद कश्यप के पुत्र विवस्वान हुए। सूर्यवंश का प्रारंभ विवस्वान के जन्म के समय से ही माना जाता है। वैवस्वत मनु विवस्वान के पुत्र थे। वैवस्वत मनु के 10 पुत्र हुए- इल, इक्ष्वाकु, करचम (नभाग), अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यंत, करुष, महाबली, शर्याति और पृषद। भगवान राम का जन्म वैवस्वत मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु के कुल में हुआ था। आपको बता दें कि जैन तीर्थंकर नेमि का जन्म भी इसी कुल में हुआ था।

➡️ इक्ष्वाकु से सूर्यवंश की उत्पत्ति हुई। इक्ष्वाकु वंश में विकुक्षि,नेमि और दण्डक सहित अनेक पुत्रों का जन्म हुआ। धीरे-धीरे समय के साथ यह पारिवारिक परंपरा बढ़ती चली गई,जिसमें हरिश्चंद्र रोहित, वृष, बहू और सगर का भी जन्म हुआ। अयोध्या नगरी की स्थापना इक्ष्वाकु के समय में हुई थी। इक्ष्वाकु कौशल देश के राजा थे जिनकी राजधानी साकेत थी। अब इसे वर्तमान में अयोध्या कहा जाता है। रामायण में गुरु वशिष्ठ ने राम के वंश का विस्तार से वर्णन किया है।

➡️ कुक्षी इक्ष्वाकु के पुत्र थे, विकुक्षी कुक्षी के पुत्र था। इसके बाद विकुक्षि के पुत्र बाण हुए और बाण के पुत्र अनरण्य हुए । इसके बाद अनरण्य से पृथु और पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ। त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए। धुंधुमार के पुत्र का नाम युवनश्व था। मान्धाता का जन्म युवनश्व से हुआ था और सुसन्धि का जन्म मान्धाता से हुआ था। सुसन्धि के दो पुत्र हुए-ध्रुवसंधि और प्रसेनजित। ध्रुवसंधि के पुत्र भरत हुए।

➡️ भरत के पुत्र असित के जन्म के बाद असित के पुत्र सगर का जन्म हुआ। सगर अयोध्या के सूर्यवंशियों के पराक्रमी राजा थे। राजा सगर के पुत्र असमंज थे। इसी प्रकार असमंज द्वारा अंशुमान का जन्म हुआ , फिर अंशुमान का पुत्र दिलीप हुआ। दिलीप के पुत्र हुए प्रतापी भागीरथ जो कठोर तपस्या करके मां गंगा को धरती पर लाए थे । भागीरथ के पुत्र काकुत्स्थ हुए और काकुत्स्थ के पुत्र रघु का जन्म हुआ।

➡️ रघु के जन्म के बाद ही इस वंश का नाम रघुवंश पड़ा क्योंकि रघु बहुत ही पराक्रमी और प्रतापी राजा थे। रघु के पुत्र हुए प्रवृद्ध। प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे। शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए। सुदर्शन के पुत्र का नाम था अग्निवर्ण। अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए। शीघ्रग के पुत्र हुए मरु। मरु के पुत्र हुए प्रशुश्रुक। प्रशुश्रुक के पुत्र हुए अम्बरीष। अम्बरीष के पुत्र का नाम था नहुष। नहुष के पुत्र हुए ययाति। ययाति के पुत्र हुए नाभाग। नाभाग के पुत्र अज हुए। अज के पुत्र थे राजा दशरथ और वे अयोध्या के राजा बने। दशरथ ने चार पुत्रों को जन्म दिया। भगवान राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न।

➡️ भगवान राम से लव और कुश ने जन्म लिया, भरत के पुत्र थे तक्ष। लक्ष्मण के दो पुत्र हुए अंगद और चन्द्रकेतु और शत्रुघ्न के पुत्र हुए सुबाहु और शत्रुघाती। भगवान राम के पुत्र कुश से वंश बेल आगे बढ़ी। कुश वंश के राजा सीरध्वज को सीता नामक पुत्री हुई, जिन्होंने कृति नामक पुत्र को जन्म दिया। कुश वंश से ही कुशवाहा, मौर्य, सैनी, शाक्य संप्रदाय की स्थापना मानी जाती है। एक शोध के अनुसार कुश की 50वीं पीढ़ी में शल्य हुए, जो महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे। इसकी गणना करें तो कुश महाभारत काल के 2500 से 3000 वर्ष पूर्व हुए थे, अर्थात आज से 6,500 से 7,000 वर्ष पूर्व।

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