अयोध्या। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के तत्वावधान में अगंद टीला पर राधेश्याम शास्त्री महाराज के द्वारा कही जा रही श्रीराम कथा के छठवें (षष्ठी दिवस) नारद जी द्वारा विष्णु जी को दिये गये श्राप और मोह प्रसंग पर चर्चा करते हुये शिव और पार्वती के बीच हुई आत्मीय चर्चा पर प्रकाश डालते हुये कहा तीर्थ यात्रा पर जाने से घमंड टूटता है,भगवान के मंदिर में प्रवेश करते ही अभिमान टूट जाता है।
तीर्थ यात्रा करते हुये व्यक्ति अच्छाई को देखें बुराई से दूर रहें।एक्सरे की मशीन बनिये अपने विचारों में पवित्रता लाईये। उन्हों ने कहा भगवान के स्मरण करने से भाग्य बदल कर अच्छा और पवित्र हो उठता है। नारद जी ने प्रभु का सुमिरन की और अपने श्रापित भाग्य को अच्छा कर लिया।भाव भाग्य को बदल देता है पर भाग्य से भाव नही बदला जा सकता है।
श्रीराम लला के सुमिरन से हम सभी का भाग्य बदल रहा है।आज व्यक्ति दूसरों के सुख से दुखी हैं अपने कर्म से दुखी नही होते हैं। हम स्वयं जब बुरे बन जायेंगे तो दूसरों में बुराई देखेंगे इस लिए अच्छा सोचो और अच्छा देखो अपने जीवन को स्वच्छ और पवित्र बनाओ।
नवधाभक्ति पर विस्तार पूर्वक चर्चा करते हुये भगवान, भक्त और भक्ति की श्रेष्ठता का वर्णन किया गया। प्रशंसा व्यक्ति के लिये हानिकारक और आलोचना आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करती है।संत तुलसी दास जी कहते हैं-
निंदक न्यारे राखिए। आगे कुटी छवाय।।
इस निंदा करने वालों से विचलित मत हों सद्कर्मों को करते हुये प्रगति करते रहिए। व्यक्ति को जब पद प्राप्त हो तो कद बढ़ना चाहिए, मद (अभिमान )नही बढ़ना चाहिए। आज पद मिलते ही व्यक्ति मद मे आ जाता है। वह अपनो को सर्वश्रेष्ठ समझने लगता है। रामचरित मानस के अनुसार नारद जी, राजा प्रतापभानु और माता कैकेयी का पतन हुआ।इन तीनों के विचारों में परिवर्तन आया इस लिये इनका पतन हुआ। संगठन सिद्धांत को मत छोड़िये एक ना एक दिन आप का सम्मान और कल्याण अवश्य होगा।
क्या क्रोध आ जाये तो आप सनातन “अपना धर्म” छोड़ देंगे? आप धन के लिये क्या अपना धर्म बदल देंगे? धर्मांतरित हो जायेंगे। इस संसार में जन्म लेने वाले सभी सनातनी हैं। आप स्वयं दूसरे धर्मावलंबी बना जाते हैं इस संसार में कोई जन्म से मुस्लिम और ईसाई नही है।
*सनातन कभी समाप्त नही हो सकता है* *यह जीवंत पर्यंत रहेगा*।
नीचे गिरना स्वभाव है और ऊपर उठना तपश्चर्या.हर व्यक्ति को अपने विचारों को पवित्र और स्वच्छ बनाना चाहिए। समाज में उच्च स्थान पर स्थापित होने के लिये यह आवश्यक है।
दूसरों के गलत आचरण स्वभाव को मत अपनाइए। बल्कि सद्कर्मीं का साध करिये। क्रोधित व्यक्ति अपने को ही नष्ट करता है। चित्र नही चरित्र अच्छा होना चाहिए। भेष नही परिवेश अच्छा होना चाहिए। चित्र सजाना है तो बाजार में जाना होगा और चरित्र बनाने के लिये रामकथा में आना होगा।
कथा व्यास शास्त्री जी ने मनु सतरूपा के जन्म और कर्म और स्थापना का वर्णन किया। सनातन में उपदेश दिया जाता है,यंहा आदेश नही दिया जाता अन्य धर्मों में आदेश जारी किया जाता है। जनसंख्या आस्थीरता समाज और राष्ट्र के लिये घातक इसका संतुलन बहुत आवश्यक। मनुष्य को अपने भौतिक और अध्यात्मिक जीवन का लक्ष्य तय करना होगा।
