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April 2, 2025 6:47 am

आज से प्रारंभ हुई चैत्र नवरात्रि, जानिए संपूर्ण पूजा विधि, कलश स्थापना के लिए होंगे दो शुभ मुहूर्त।

चैत्र नवरात्रि। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा रविवार, 30 मार्च को रेवती नक्षत्र और ऐन्द्र योग के साथ सर्वार्थ सिद्धि योग में चैत्र मास के वासंतिक नवरात्रि कलश स्थापना के साथ शुरू होंगे। इसी दिन से विक्रम संवत् और हिंदू पंचांग का नववर्ष शुरू होता है। इस दिन विक्रम संवत् 2082 की शुरुआत होगी।

चैत्र नवरात्रि कलश स्थापना शुभ मुहूर्त 2025

पंचांग गणना अनुसार, 30 मार्च को कलश स्थापना के लिए दो शुभ मुहूर्त है। 30 मार्च को घटस्थापना सुबह 06 बजकर 02 मिनट से लेकर 10 बजकर 09 मिनट के मध्य कर सकते हैं। इसके बाद अभिजीत मुहूर्त में भी कलश स्थापना के लिए शुभ समय है। अगर साधक किसी कारणवश सुबह के समय घटस्थापना नहीं कर पाते हैं, तो अभिजीत मुहूर्त में 11 बजकर 48 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 38 मिनट तक कलश स्थापना कर सकते हैं।

तिथि का क्षय होने के कारण इस बार नवरात्रि आठ दिन के ही होंगे। देवी भागवत के अनुसार, जब नवरात्रि रविवार से प्रारंभ होती है तो मां जगदंबा हाथी पर सवार होकर आती हैं। यह बेहद शुभ माना जाता है। हाथी को सुख-समृद्धि और शांति का प्रतीक माना जाता है। माता भक्तों को यश-वैभव, धन-संपदा प्रदान करती हैं। इस वर्ष के राजा और मंत्री सूर्य हैं।

अष्टरात्रि में होगी देवी आराधना 

पंचांग अनुसार नवसंवत्सर 2082 में देवी आराधना का पर्व आठ रात्रि तक मनाया जाएगा क्योंकि चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया ‘क्षय’ तिथि है। शास्त्रानुसार जो तिथि दो सूर्योदय स्पर्श ना करे उसे पंचांगों में क्षय तिथि माना जाता है। चैत्र शुक्ल तृतीया का प्रारंभ दिनांक 31 मार्च 2025 को प्रात: 09 बजकर 13 मि. से होगा एवं समाप्ति दिनांक 01 अप्रैल 2025 को प्रात: 05 बजकर 42 मिनट पर होगी, जबकि 31 मार्च एवं 01 अप्रैल दोनों ही दिन सूर्योदय क्रमश: प्रात: 06 बजकर 03 मि. एवं प्रात: 06 बजकर 02 मि. पर होगा अर्थात सूर्योदय के समय दोनों ही दिन तृतीया तिथि नहीं होने से ‘तृतीया’ क्षय तिथि होगी।तृतीया तिथि के क्षय होने से इस वर्ष चैत्र नवरात्रि में देवी आराधना आठ रात्रि में होगी। दुर्गाष्टमी दिनांक 05 अप्रैल 2025 को और श्रीराम नवमी 06 अप्रैल 2025 को रहेगी।

चैत्र नवरात्रि कलश स्थापना और पूजा विधि

🔸नवरात्रि के पहले दिन घर के मुख्य द्वार के दोनों तरफ स्वास्तिक बनाएं और दरवाजे पर आम के पत्ते का तोरण लगाएं। क्योंकि माता इस दिन भक्तों के घर में आती हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं और आपके घर में निवास करती हैं।

🔸नवरात्रि में माता की मूर्ति को लकड़ी की चौकी या आसन पर स्थापित करना चाहिए। जहां मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें वहां पहले स्वास्तिक का चिह्न बनाएं। उसके बाद रोली और अक्षत से टीकें और फिर वहां माता की मूर्ति को स्थापित करें। उसके बाद विधिविधान से माता की पूजा करें।

🔸वास्तुशास्त्र के अनुसार उत्तर और उत्तर-पूर्व दिशा यानी ईशान कोण को पूजा के लिए सर्वोत्तम स्थान माना गया है। आप भी अगर हर साल कलश स्थापना करते हैं तो आपकी इसी दिशा में कलश रखना चाहिए और माता की चौकी सजानी चाहिए।

🔸नवरात्रि के दिनों में कण-कण में मां दुर्गा का वास माना जाता है और पूरा वातावरण भक्तिमय रहता है। वास्तु में बताया गया है कि एक चावल से भरा पीतल का कलश अपने मंदिर के उत्तर-पूर्व में रखना समृद्धिदायक होता है। ऐसा करने से मां आपके धन-धान्य में वृद्धि करती हैं और आपके घर में समृद्धि आती है।

🔸ध्यान रहे कि पूजन कक्ष साफ़-सुथरा हो और उसकी दीवारें हल्के पीले, गुलाबी जैसे आध्यात्मिक रंग की हो तो अच्छा है, क्योंकि ये रंग आध्यात्मिक ऊर्जा के स्तर को बढ़ाते हैं। इसके साथ ही काले, नीले और भूरे जैसे तामसिक रंगों का प्रयोग पूजा कक्ष की दीवारों पर नहीं होना चाहिए।

🔸धर्म शास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। वास्तु के अनुसार ईशान कोण यानि उत्तर-पूर्व जल एवं ईश्वर का स्थान माना गया है और यहां सर्वाधिक सकारात्मक ऊर्जा रहती है। इसलिए पूजा करते समय माता की प्रतिमा या कलश की स्थापना इसी दिशा में करनी चाहिए। देवी पूजा-अनुष्ठान के दौरान मुख्य द्वार पर आम या अशोक के पत्तों की बंदनवार लगाने से घर में नकारात्मक शक्तियां प्रवेश नहीं करती।

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