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April 30, 2025 3:24 pm

नवरात्रि के दूसरे दिन आज, करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, जानें भोग, आरती और माता का स्वरुप।

चैत्र नवरात्रि। चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन देवी दुर्गा के दूसरे स्वरूप, मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। इस दिन उनकी पूजा से जीवन की सभी परेशानियां और संकट दूर होते हैं। मां ब्रह्मचारिणी को ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है। ‘ब्रह्म’ का अर्थ है तपस्या और ‘चारिणी’ का अर्थ है आचरण करने वाली। मां ब्रह्मचारिणी वे देवी हैं, जो कठोर तपस्या और ब्रह्मचर्य का पालन करती हैं। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से व्यक्ति के अंदर त्याग, सदाचार और संयम की भावना बढ़ती है। यह पूजा जीवन की कठिनाइयों और बाधाओं से मुक्ति दिलाती है। आइए जानते हैं, मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि, भोग,आरती और व्रत कथा।

कैसा पड़ा मां ब्रह्मचारिणी का नाम 

नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के तपस्विनी रूप की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार, मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया था। नारद मुनि की सलाह पर, उन्होंने भगवान शिव को अपना पति प्राप्त करने के लिए अत्यंत कठोर तपस्या की थी। हजारों वर्षों तक निरंतर तपस्या करने के कारण ही उन्हें तपस्विनी और ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है। इस कठिन तपस्या के दौरान, मां पार्वती ने कई वर्षों तक बिना कुछ खाए-पिए कठोर तप किया और भगवान शिव को प्रसन्न किया। उनके इस तपस्वि जीवन के प्रतीक स्वरूप नवरात्रि के दूसरे दिन उनकी पूजा और स्तवन किया जाता है। इस दिन, मां ब्रह्मचारिणी के रूप में उनकी पूजा उनके दृढ़ संकल्प और समर्पण को दर्शाती है। यह दिन हमें यह शिक्षा देता है कि सच्ची श्रद्धा, धैर्य और दृढ़ निश्चय के साथ हम किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।

मां ब्रह्मचाारिणी का स्वरुप

मां ब्रह्मचारिणी, ज्ञान और विद्या की देवी हैं, जो अपने भक्तों को सफलता और विजय प्रदान करती हैं। इनका रूप अत्यंत सरल, सशक्त और सुंदर है। मां ब्रह्मचारिणी सफेद वस्त्र धारण करती हैं। उनके एक हाथ में अष्टदल की माला तथा दूसरे हाथ में कमंडल धारण करती हैं। ये देवी ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की अधिष्ठात्री हैं और समस्त सृष्टि के ज्ञान की स्वामिनी मानी जाती हैं। उनके हाथों में मौजूद अक्षयमाला और कमंडल शास्त्रों, तंत्र-मंत्र और आध्यात्मिक ज्ञान के प्रतीक हैं। मां ब्रह्मचारिणी का स्वभाव बहुत ही शांत और दयालु है। वह जल्दी प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। जो भी भक्त सच्चे मन से इनकी पूजा करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। विशेष रूप से, विद्यार्थियों को मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से ज्ञान और विद्या में सफलता प्राप्त होती है।

मां ब्रह्मचारिणी भोग

मां ब्रह्मचारिणी को मिसरी का भोग अर्पित किया जाता है। मान्यता है कि यह भोग भक्तों को लंबी उम्र, अच्छी सेहत और मानसिक शांति प्रदान करता है। चीनी या मिसरी का भोग अर्पित करने से न केवल शरीर की सेहत में सुधार होता है, बल्कि इससे अच्छे विचारों का भी प्रवेश होता है। मां ब्रह्मचारिणी का यह स्वरूप हमें शांतिपूर्वक अपने लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करता है। इस दिन, पीले रंग के वस्त्र, फूल और फल अर्पित करने का महत्व भी विशेष है। पीला रंग बुद्धि, ज्ञान, और उत्साह का प्रतीक है, और मां ब्रह्मचारिणी को यह रंग अर्पित करने से मानसिक विकास और सफलता की प्राप्ति होती है।

मां ब्रह्मचारिणी का पूजा मंत्र

दधाना करपद्माभ्याम्, अक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि, ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

ओम ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम: दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व

नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का विशेष महत्व है, क्योंकि वह शक्ति, तपस्या और समर्पण की देवी हैं। इस दिन की पूजा विधि से भक्तों को मानसिक शांति, शक्ति और जीवन में संतुलन की प्राप्ति होती है।

मां ब्रह्मचारिणी पूजा विधि

ब्रह्म मुहूर्त में उठें: नवरात्रि के दूसरे दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से शुद्ध हो जाएं। इसके बाद पूजा स्थल पर गंगाजल छिड़ककर उसे शुद्ध करें।

पीला रंग पहनें: मां ब्रह्मचारिणी को पीला रंग प्रिय है, इसलिए पूजा के दौरान भक्तों को पीले वस्त्र पहनने चाहिए और पीले रंग की वस्तुएं (जैसे फूल, फल, आदि) अर्पित करनी चाहिए।

पंचामृत स्नान : मां ब्रह्मचारिणी को पंचामृत से स्नान कराएं, जो दूध, दही, घी, शहद और चीनी का मिश्रण होता है। इसके बाद उन्हें रोली, कुमकुम से तिलक करें।

धूप-दीप और भोग : पूजा में धूप और दीपक जलाकर मां को अर्पित करें। फिर मां को चीनी, पीले फल, दूध से बनी मिठाइयां और पंखे, बताशे जैसे भोग अर्पित करें।

हवन और आहुति : भक्त अपनी श्रद्धा अनुसार लौंग, बताशे और हवन सामग्री से अग्नि में आहुति दें। इससे पूजा में तात्त्विक ऊर्जा का संचार होता है।

मंत्र जाप और जयकारे : पूजा के दौरान “मां ब्रह्मचारिणी की जय” के जयकारे लगाएं और देवी के ध्यान मंत्र का जाप करें।

आरती और पाठ: पूजा के अंत में पान-सुपारी अर्पित करें, फिर मां की आरती, दुर्गा चालीसा और दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।

कलश पूजा और नवग्रह पूजा : पूजा में कलश देवता और नवग्रह की पूजा भी करें।

शाम की आरती : शाम के समय पुनः मां ब्रह्मचारिणी की आरती करें और श्रद्धा से प्रार्थना करें।

मां ब्रह्मचारिणी की आरती

जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता। जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।

ब्रह्मा जी के मन भाती हो। ज्ञान सभी को सिखलाती हो।

ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा। जिसको जपे सकल संसारा।

जय गायत्री वेद की माता। जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।

कमी कोई रहने न पाए। कोई भी दुख सहने न पाए।

उसकी विरति रहे ठिकाने। जो तेरी महिमा को जाने।

रुद्राक्ष की माला ले कर। जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।

आलस छोड़ करे गुणगाना। मां तुम उसको सुख पहुंचाना।

ब्रह्माचारिणी तेरो नाम। पूर्ण करो सब मेरे काम।

भक्त तेरे चरणों का पुजारी। रखना लाज मेरी महतारी।

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