रिपोर्ट– धर्मेन्द्र कुमार सिंह।
अयोध्या। राजनीति और सार्वजनिक जीवन में अपने प्रभावशाली पदचिन्ह छोड़ने वाले बृजभूषण शरण सिंह अक्सर अपने गुरुओं और अयोध्या के संत समाज के प्रति गहरी निष्ठा व्यक्त करते रहे हैं।उनका यह संबंध मात्र धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन के एक निर्णायक मोड़ पर मिले अप्रतिम सहयोग का साक्षी भी है, जिसे वे सार्वजनिक रूप से स्वीकार करते हैं। बृजभूषण शरण सिंह के अनुसार, आज वे जिस भी मुकाम पर हैं, उसमें साधु-संतों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। विशेष रूप से, अयोध्या, हनुमानगढ़ी के महंत ज्ञानदास जी , अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के पूर्व अध्यक्ष व संकटमोचन सेना के संरक्षक , उनके जीवन में एक पथप्रदर्शक की भूमिका में रहे हैं। सिंह उस दौर को याद करते हैं जब वे अपने युवावस्था में थे – करीब 19-20 वर्ष के। उस समय उन्हें एक गंभीर चोट लगी थी, जिससे उनका काफी रक्तस्राव हो गया था। यह स्थिति इतनी विकट थी कि वे 12 घंटे से अधिक समय तक बेहोश रहे। डॉक्टरों को तुरंत ‘ओ-पॉजिटिव’ रक्त समूह की आवश्यकता थी, जो उपलब्ध नहीं हो पा रहा था।ऐसे चुनौतीपूर्ण क्षण में, महंत ज्ञानदास जी ही संकटमोचक बनकर सामने आए। उन्होंने अपनी शारीरिक स्थिति का ध्यान न रखते हुए, तुरंत अपनी जांच करवाई और रक्त समूह मिलते ही, बिना किसी संकोच के बृजभूषण शरण सिंह को अपना रक्त दान करने के लिए आगे आ गए। उन्होंने दो यूनिट रक्त दान कर युवा बृजभूषण को नया जीवन दिया। यह घटना तब और भी उल्लेखनीय हो जातीहै, जब सिंह बताते हैं कि उसी दिन महंत ज्ञानदास जी की अपनी एक महत्वपूर्ण कुश्ती थी। लेकिन अपने शिष्य के जीवन की रक्षा को उन्होंने सर्वोपरि समझा और रक्त दान करने के उपरांत ही अपनी कुश्ती में भाग लेने गए।बृजभूषण शरण सिंह इस घटना को अपने जीवन का सबसे बड़ा मोड़ मानते हैं। वे कहते हैं कि महंत ज्ञानदास जी के इस बलिदान और उनके जीवनभर के मार्गदर्शन ने उन्हें एक सकारात्मक सोच और आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी है। यह आध्यात्मिक ऊर्जा उनके सामाजिक और राजनीतिक जीवन में लगातार दिखाई देती है, चाहे वह शिक्षा के क्षेत्र में उनके द्वारा स्थापित संस्थानों का कार्य हो, ग्रामीण विकास के लिए उनके प्रयास, या भारतीय कुश्ती को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में उनकी भूमिका। बृजभूषण शरण सिंह का महंत ज्ञानदास जी और अयोध्या के संत समाज से गहरा संबंध उनके सार्वजनिक जीवन की एक महत्वपूर्ण धुरी रहा है। यह घटना सिर्फ एक अतीत की याद नहीं, बल्कि गुरु-शिष्य परंपरा में विश्वास, त्याग और निस्वार्थ प्रेम की एक शक्तिशाली गाथा है, जो सिंह के व्यक्तित्व और उनके कार्यों को समझने में सहायक है।
