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October 16, 2024 2:14 pm

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धरती पर हर व्यक्ति अपने आप में विशेष होता है – पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज।

रिपोर्ट– धर्मेंद्र कुमार सिंह।

अयोध्या। संसार में कोई भी व्यक्ति छोटा बड़ा नहीं होता है। हर व्यक्ति का अपना अलग महत्व होता है। प्रकृति अपने हिसाब से चलती है और भगवान भी अलग-अलग कार्यों को संपादित करने के लिए उसके योग्य लोगों को ही निमित्त बनाते हैं।

उक्त बातें अयोध्या नगरी के परिक्रमा मार्ग के हनुमान गुफा के निकट निर्मित कथा मंडप में श्री राम कथा का गायन करते हुए पांचवें दिन पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कहीं।

सरस् श्रीराम कथा गायन के लिए लोक ख्याति प्राप्त प्रेममूर्ति पूज्य श्री प्रेमभूषण जी महाराज ने बिहार में औरंगाबाद के दाउदनगर स्थित सूर्य मंदिर से जुड़ी समिति के पावन संकल्प से आयोजित नौ दिवसीय रामकथा गायन के क्रम में धनुष भंग और श्री सीताराम विवाह से जुड़े प्रसंगों का गायन करते हुए कहा कि – जहां काम आवे सुई, का करे तलवार। तलवार से कुर्ते का बटन तो नहीं टांक सकते हैं। उसके लिए सुई की ही आवश्यकता होती है। किसी व्यक्ति से जबरन कोई कार्य भी नहीं कराया जा सकता है। कोई भी काम जिससे होना होता है उसी से होता है। करने वाले तो स्वयं भगवान हैं। इसलिए कार्य को करने के बाद यह अहम भाव नहीं होना चाहिए कि मैंने किया है।

पूज्यश्री ने कहा सनातन धर्म और परंपरा में गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने वाले वर-वधू यहीं से अपने जीवन की परमार्थ यात्रा की शुरूआत करते हैं। गृहस्थ आश्रम को सभी चार आश्रम में श्रेष्ठतम बताया गया है। सनातन परंपरा में विवाह संस्कार को समाज का मेरुदंड बताया गया है।

महाराज जी ने कहा कि निरंतर भजन में रहने वाले की कभी मृत्यु नहीं होती है। वह अपनी कीर्ति से कुल परम्परा का निर्माण करते हैं और संसार में अमर हो जाते हैं। इसलिए सामान्य व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने जीवन के सभी क्रियाओं में संयुक्त रहते हुए भजन में भी प्रवृत्त हों। महाराज जी का सत्कर्म सोचने से नहीं होता है सत्कर्म के लिए सोचने वाले सोचते रह जाते हैं लेकिन करने वाला तुरंत उस कार्य को पूरा कर लेता है।

मनुष्य को अपने जीवन में अपने कर्म को हमेशा धर्म सम्मत रखने की आवश्यकता होती है। जब हमारा कर्म बिगड़ता है तो फिर लाख प्रयास करने के बाद भी हमारी मती गति काल के वश में चली जाती है।

पूज्यश्री ने कहा कि मनुष्य को अपने जीवन में भगवान और भागवतों के साथ नहीं उलझना चाहिए। भगवान तो अपने प्रति किये गए किसी के दोष को क्षमा भी कर देते हैं। लेकिन, अगर उनके भक्तों के साथ किसी तरह का अन्याय होता है तो उसे भगवान कभी भी माफ नहीं करते हैं। यह हमारे विभिन्न सदग्रंथों में ही उदाहरण के साथ वर्णित है। मनुष्य को यह प्रयास करना चाहिए कि उससे कभी भी किसी साधु संत और भगत का अपकार नहीं हो। अगर ऐसा होता है तो परिणाम भी झेलने के लिए तैयार रहना होगा।

मनुष्य के जीवन में सुख और दुख दोनों का आना निश्चित है एक आता है तो एक चला जाता है। दुख हो या सुख दोनों ही अपने ही कर्मों के अनुसार ही मनुष्य के जीवन में आता है।

हमारे शास्त्रों का एक सरल सिद्धांत दिया है भी है कि आदमी को सब कार्य छोड़कर भी भोजन करना चाहिए, हजार कार्य छोड़कर स्नान करना चाहिए और एक लाख कार्य छोड़कर भी दान करना चाहिए। चाहे वह दान थोड़ा ही हो। लेकिन, यह सभी कुछ छोड़ कर के भगवान का भजन करना चाहिए।

पूज्य श्री ने कहा कि भगवान को तर्क से नहीं जाना जा सकता है। कथा कर्म में महाराज श्री ने कई सुमधुर भजनों से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। हजारों की संख्या में उपस्थित रामकथा के प्रेमी, भजनों का आनन्द लेते हुए, झूमते नजर आए।

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