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October 16, 2024 10:50 pm

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मनुष्य के पहुंच जाने भर से तारने की क्षमता रखता हो वह तीर्थ है – पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज। 

रिपोर्ट- धर्मेंद्र कुमार सिंह।

अयोध्या। सनातन संस्कृति का राष्ट्र भारतवर्ष तीर्थों का देश कहा जाता है। धरती का वह स्थान जहां मनुष्य पहुंच जाए तो उसका कल्याण हो जाए, वह हमारे तीर्थ स्थल ही हैं। जीव को तारने की क्षमता रखने वाला स्थान ही तीर्थ कहलाता है।

उक्त बातें अयोध्या नगरी के परिक्रमा मार्ग के हनुमान गुफा के निकट निर्मित कथा मंडप में श्री राम कथा का गायन करते हुए आठवें दिन पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कहीं।

सरस् श्रीराम कथा गायन के लिए लोक ख्याति प्राप्त प्रेममूर्ति पूज्य श्री प्रेमभूषण जी महाराज ने बिहार में औरंगाबाद के दाउदनगर स्थित सूर्य मंदिर से जुड़ी समिति के पावन संकल्प से आयोजित नौ दिवसीय रामकथा गायन के क्रम भगवान की वन प्रदेश की मंगल यात्रा से जुड़े प्रसंगों का गायन करते हुए कहा कि सांसारिक कर्मकांड और जंजाल से बंधा हुआ मनुष्य शायद ही कभी-कभी सत्कर्म और तीर्थ स्थान के लिए समय निकाल पाता है। महर्षि वाल्मीकि ने भगवान श्री राम को बताया है कि जिसके पांव अनायास ही तीर्थ यात्रा में पहुंच जाएं, आप उनके मन में निवास करते हैं।

पूज्य श्री ने कहा कि भगवान का शरीर मनुष्य की तरह से हाड़- मांस से निर्मित नहीं है। इसलिए भगवान विकारों से परे हैं लेकिन मनुष्य का शरीर विकारों का घर है। कोई अगर छह प्रकार के विकारों से परे होने का दावा करता है तो निश्चित तौर पर झूठ बोल रहा होता है।

महाराज जी ने कहा कि विकास के नाम पर विनाश होने से बचा जाए। मिलावटी और रसायन युक्त खाना खाने के कारण बीमारी का घर होता जा रहा है लोगों का शरीर। लोगों को जहरीला खाना खिला करके धन कमाने वाले मिलावटखोरों को सरकार तो क्या भगवान का भी भय नहीं रहा। लेकिन यह भी सत्य है कि जो जैसा कर्म करता है उसका फल उसे खाना ही पड़ता है।

सनातन धर्म और संस्कृति के लोग विधि-विधान का पालन नहीं करके, स्वयं अपने कुल और समाज को हानि पहुंचा रहे हैं। अब तो लोग अपने बुजुर्गों के अंतिम संस्कार में भी प्रयोग करने लग रहे हैं। कोई एक ही दिन में संस्कार कर दे रहा है तो कोई 3 दिन में, तो कोई 7 दिन में। अंतिम क्रिया से जुड़ा त्रयोदश संस्कार का लोप होता जा रहा है। व्यस्तता और समय ना होने का बहाना बाद में जीवन की कठिन समस्याओं के रूप में सामने आता है।

हमारी स्मृतियों में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि जीवात्मा का शरीर से निकलने के बाद 13 दिनों का समय अपने सगे संबंधियों, स्वजनों में घूमने में बीतता है। विधिवत तेरही के बाद आत्मा को स्वरूप प्राप्त होता है और तब उसकी आगे की यात्रा शुरू होती है। अब अगर कोई 3 दिनों में या 7 दिनों में ही अंतिम संस्कार की विधि संपन्न कर देता है तो फिर उसके परिजन की आत्मा को स्वरूप प्राप्त करने में भी कठिनाई आएगी।

पूज्यश्री ने कहा कि एक तरफ हमारे अपने ही सनातन धर्म के लोगों में भटकाव है तो दूसरी तरफ अन्य धर्मों और संप्रदायों के लोग और खासकर कुछ मीडिया के लोग सनातन धर्म की निंदा करके अपना ग्राफ बढ़ाने के प्रयास में लगे रहते हैं।

सनातन धर्म की निंदा करने वालों को यह पूरी तरह से ध्यान में रखने की आवश्यकता है कि सनातन धर्म का भूतकाल दिव्य था, वर्तमान दिव्य है और भविष्य भी दिव्य होगा। यह धर्म स्वयं राम जी और कृष्ण जी के द्वारा स्थापित है और भगवान के द्वारा स्थापित एकमात्र सत्य सनातन धर्म ही है। पिछले जन्मों के पुण्य के संचय के बाद ही इस धर्म में लोगों का जन्म होता है।

महाराज श्री ने कहा कि राम जी ने मनुष्य के रूप में जीवन जीते हुए हर प्रकार के संबंधों के निर्वाह के संबंध में स्वयं ही एक उदाहरण उपस्थित किया है। हर प्रकार की स्थिति परिस्थिति में समभाव से प्रसन्न रहना राम जी से सीखा जा सकता है।

हमारे ऋषि मनीषियों ने भी कहा है कि अगर आप प्रसन्न रहते हैं तो समस्याएं आपसे दूर जाकर खड़ी रहो जाती हैं। मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो हंस सकता है। इसके बावजूद अधिकांश लोग पता नहीं क्यों मुंह लटकाए हुए रहते हैं और तनाव में रहने की बात करते हैं।

शास्त्र कहते हैं कि दैवीय शक्तियां सिर्फ उसकी ही मदद करती है, जो दूसरों के दुख को समझता है, जो बुराइयों से दूर रहता है, जो नकारात्मक विचारों से दूर रहता है, जो नियमित अपने इष्ट की आराधना करता है या जो पुण्य के काम में लगा हुआ है।

सनातन धर्म में तंत्र साधना अघोर विद्या का आश्रय लेना मना है। पूजा देवी-देवताओं की और भजन भगवान का ही करना चाहिए। यह प्रमाणिक तथ्य है कि जो भी इस तंत्र के चक्कर में पड़ता है, तंत्र और जंतर से उसका कोई ना कोई एक अंग विकृत हो जाता है।

प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि तंत्र और जंतर के चक्कर में अपना एक अंग खराब करने से अच्छा है कि आप हमेशा मंत्र में विश्वास रखें। नवधा भक्ति में पांचवीं भक्ति यही है और स्वयं भगवान श्री राम ने बताई है। भगवान में विश्वास रखकर जो मंत्रों की शरण में रहता है उसका सर्वदा कल्याण होता है।

पूज्य महाराज श्री ने कहा कि खासकर धरती पर देवों के देव महादेव इसीलिए जगत प्रसिद्ध रहे हैं कि जिनका कोई सहारा नहीं होता है उनके लिए शिवबाबा ही सहायक बनते हैं।

महाराज श्री ने कहा कि जीवन में कुछ भी प्राप्त करने के लिए स्वयं को योग्य बनाना आवश्यक है। अगर व्यक्ति योग्य नहीं है तो कोई भी चाह कर भी कुछ भी उसे नहीं प्रदान कर सकता है देने वाले स्वयं भगवान ही क्यों ना हो।

प्रेम भूषण जी महाराज ने कहा कि अगर हम अपने बच्चे को संस्कारित करना चाहते हैं तो हमें अपने घर के माहौल को उसके अनुरूप बनाने की जरूरत है। संस्कार की कोई टिकिया नहीं आती है जिसे घोलकर बच्चों को पिलाया जा सके। हम अपने घर में जैसा जीवन जीते हैं हमारे बच्चे हफ्ते देख देखकर वैसा ही आचरण करते हैं और सीखते हैं।

बेटा हो या बेटी अगर हम उन्हें उचित शिक्षा नहीं देंगे, उनमें संस्कारों का आधान नहीं करेंगे तो उनसे हम अच्छे आचरण की अपेक्षा नहीं कर सकते हैं।

बड़ी संख्या में उपस्थित श्रोतागण को महाराज जी के द्वारा गाए गए दर्जनों भजनों पर झूमते हुए देखा गया। कथा में कई विशिष्ट जन भी उपस्थित रहे।

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